22-10-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन

“फुल की निशानी – फ्लोलेस” 

मास्टर जानी जाननहार बने हो? मास्टर नॉलेजफुल बने हो? मास्टर नॉलेजफुल बनने से सर्व नॉलेज को जान गए हो? मास्टर नॉलेजफुल, मास्टर जानी जाननहार बन गए हो वा बन रहे हो? अभी तक बन रहे हो। नॉलेजफुल बन गये व नॉलेजफुल बन रहे हो? नॉलेजफुल बन रहे हो वा ब्लिसफुल बन रहे हो? बन रहे हो वा बन गए हो?(बन रहे हैं) जहाँ तक अन्तिम स्टेज साकार रूप में देखी, वहाँ तक नॉलेजफुल, जानी जाननहार बने हो? साकार बाप के समान बनने में अन्तर रहा हुआ है इसलिए फुल नहीं कहते हो। कहाँ तक फुल बनना है उसका एग्ज़ाम्पुल स्पष्ट है ना? ज्यादा मास्टर रचयिता के नशे में रहते हो वा रचना के? किस नशे में ज्यादा समय रहते हो। आज ये प्रश्न क्यों पूछा? आज सर्व रत्नों को देख और परख रहे थे कि कहाँ तक फ्लोलेस हैं अर्थात् फुल हैं। अगर फुल नहीं तो फेल। तो आज फुल और फेल की रेखा देख रहे थे। तब प्रश्न पूछा कि फुल बने हो? जैसे बाप की महिमा है सभी बातों में फुल है ना। तो बच्चों को भी मास्टर नॉलेजफुल तो बनना ही है। सिर्फ नॉलेज में नहीं लेकिन मास्टर नॉलेजफुल। इसलिए प्रश्न भी पूछा कि मास्टर नॉलेजफुल बने हो? मास्टर तो हो ना। मास्टर नॉलेजफुल में भी ना हो सकती है क्या? अगर आप के दो हिसाब हैं तो बापदादा के भी दो राज़ हैं। आज एक-एक में तीन बातें विशेष रूप से देख रहे थे। आज अमृतवेले की दिनचर्या सुना रहे हैं कि क्या देख रहे थे। आज बापदादा ने एक-एक रत्न की तीन बातें देखी। वह कौन-सी? यह भी एक ड्रिल कराते हैं।

आज तीन बातें यह देख रहे थे – एक तो हरेक की लाइट, दूसरा माईट और तीसरा राईट। राईट शब्द के दो अर्थ हैं। एक तो राईट यथार्थ को कहा जाता है, दूसरा राईट अधिकार को कहा जाता है। राईट, अधिकारी भी कितने बने हैं और साथ साथ यथार्थ रूप में कहाँ तक हैं। तो लाइट, माईट और राईट। यह तीन बातें देख रहे थे। रिजल्ट क्या निकली वह भी बताते हैं। अभी सर्विस बहुत की है ना। तो वह रिजल्ट देख रहे थे। अभी तक सिर्फ आवाज़ फैलने तक रिजल्ट है। आवाज़ फैलाने में पास हो लेकिन आत्माओं को बाप के समीप लाने का आह्वान अभी करना है। आवाज़ फैला है लेकिन आत्माओं का आह्वान करना है। आह्वान करना और बाप के समीप लाना यह पुरुषार्थ अभी रहा हुआ है। क्योंकि स्वयं भी आवाज़ से परे रहने के इच्छुक हैं, अभ्यासी नहीं हैं। इसलिए आवाज़ से आवाज़ फैल रहा है। लेकिन जितना स्वयं आवाज़ से परे होकर सम्पूर्णता का आह्वान अपने में करेंगे उतना आत्माओं का आह्वान कर सकेंगे। अभी भल आह्वान करते भी हो लेकिन रिज़ल्ट आवागमन में है। आवागमन में आते भी हैं। जाते भी हैं। लेकिन आह्वान के बाद आहुति बन जाएँ, वह काम अभी करना है। नॉलेज के तरफ आकर्षित होते हैं लेकिन नॉलेजफुल के ऊपर आकर्षित करना है। अभी तक मास्टर रचयिता कहाँ-कहाँ रचना के आकर्षण में आकर्षित हो जाते हैं। इसलिए जो जितना और जैसा स्वयं है उतना और वैसा ही सबूत दे रहे हैं। अभी तक शक्ति रूप, शूरवीरता का स्वरुप नैनों और चैनों में नहीं है।

शक्ति वा शूरवीरता की सूरत ऐसी दिखाई दे जो कोई भी आसुरी लक्षण वाले हिम्मत न रख सकें। लेकिन अभी तक आसुरी लक्षण के साथ-साथ आसुरी लक्षण वाले कहाँ-कहाँ आकर्षित कर लेते हैं। जिसको रॉयल माया के रूप में आप कहते हो वायुमण्डल ऐसा था। वाइब्रेशन ऐसे थे वा समस्या ऐसी थी इसलिए हार हो गयी। कारण देना गोया अपने को कारागार में दाखिल करना है। अब समय बीत चुका। अब कारण नहीं सुनेंगे। बहुत समय कारण सुने। लेकिन अब प्रत्यक्ष कार्य देखना है न कि कारण। अभी थोड़े समय के अन्दर धर्मराज का रूप प्रत्यक्ष अनुभव करेंगे। क्योंकि अब अन्तिम समय है। अनुभव करेंगे कि इतना समय बाप के रूप में कारण भी सुने, स्नेह भी दिया, रहम भी किया, रियायत भी बहुत की लेकिन अभी यह दिन बहुत थोड़े रह गए हैं। फिर अनुभव करेंगे कि एक संकल्प के भूल एक का सौगुणा दण्ड कैसे मिलता है। अभी-अभी किया और अभी-अभी इसका फल व दण्ड प्रत्यक्ष रूप में अनुभव करेंगे अभी वह समय बहुत जल्दी आने वाला है। इसलिए बापदादा सूचना देते हैं क्योंकि फिर भी बापदादा बच्चों के स्नेही है।
अब मास्टर रचयितापन का नशा धारण कर रचना के सर्व आकर्षण से अपने को दूर करते जाओ। बाप के आगे रचना हो लेकिन अब समय ऐसा आने वाला है जो मास्टर रचयिता, मास्टर नॉलेजफुल बनकर उस आकर्षक पावरफुल स्थिति में स्थित न रहे तो रचना और भी भिन्न-भिन्न रंग-ढंग, रूप और रचेगी। इसलिए फुल बनने के लिए स्टेज पर पूरी रीति स्थित हो जाओ तो फिर कहाँ भी फेल नहीं होंगे। अभी बचपन की भूलें, अलबेलेपन की भूलें, आलस्य की भूलें, बेपरवाही की भूलें रही हुई हैं। इन चार प्रकार की भूलों को ऐसे भूल जाओ जैसे सतयुगी दुनिया में भूल जायेंगे। तो ऐसा पावरफुल शक्तिस्वरूप, शस्त्रधारी स्वरूप, सदा जागती ज्योति स्वरूप अपना प्रत्यक्ष रूप दिखाओ। अभी आपके अपने अपने भक्त आप गुप्त वेशधारी देवताओं को फिर से पाने के लिए तड़फ रहे हैं। आप के सम्पूर्ण मूर्त प्रत्यक्ष होंगे तब तो आप के भक्त प्रत्यक्ष रूप में अपने इष्ट को पा सकेंगे। अभी तो कई प्रकार के हैं। भल आवाज़ सुनेंगे लेकिन यह भी याद रखना एक तरफ आसुरी आत्माओं की आवाज़ और भी आकर्षक तथा फुल फ़ोर्स में होंगी। दूसरी तरफ आप के भक्तों की आवाज़ भी कई प्रकार से और फुल फ़ोर्स में होंगी। अभी प्रत्यक्ष रूप में क्या लाना है और क्या नहीं लाना है वह भी परखना बुद्धि का काम है। इसलिए अभी रियायत का समय गया। अभी रूहानियत का समय है। अगर रूहानियत नहीं होगी तो भिन्न-भिन्न प्रकार की माया की रंगत में आ जायेंगे। इसलिए आज बापदादा फिर भी सूचना दे रहे हैं।

जैसे मिलिट्री मार्शल पहले एक सीटी बजाते हैं फिर लास्ट सीटी होती है फाइनल। तो आज नाज़ुक समय की सूचना की फर्स्ट सीटी है। सीटी बजाते हैं कि तैयार हो जायें। इसलिए अभी परीक्षाओं के पेपर देने के लिए तैयार हो जाओ। ऐसे नहीं समझो बापदादा तो अव्यक्त हैं। हम व्यक्त में क्या भी करें। लेकिन नहीं। हरेक के एक-एक सेकण्ड के संकल्प का चित्र अव्यक्त वतन में स्पष्ट होता रहता है। इसलिए बेपरवाह नहीं बनना है। ईश्वरीय मर्यादाओं में बेपरवाह नहीं बनना है। आसुरी मर्यादाओं वा माया से बेपरवाह बनना है न कि ईश्वरीय मर्यादाओं से बेपरवाह बनना है। बेपरवाही का कुछ-कुछ प्रवाह वतन तक पहुँचता है। इसलिए आज बापदादा फिर से याद दिला रहे हैं। सम्पूर्णता को समीप लाना है। समस्याओं को दूर भगाना है और सम्पूर्णता को समीप लाना है। कहाँ सम्पूर्णता के बजाय समस्याओं को बहुत सामने रखते हैं। समस्याओं का सामना करें तो समस्या समाप्त हो जाये। सामना करना नहीं आता है तो एक समस्या से अनेक समस्यायें आ जाती हैं। पैदा हो और वहाँ ही ख़त्म कर दें तो वृद्धि न हो। समस्या को फौरन समाप्त कर देंगे तो फिर वंश पैदा नहीं होगा। अंश रहता है तो वंश होता है। अंश को ही ख़त्म कर देंगे तो वंश कहाँ से आएगा। तो समझा समस्या के बर्थ कण्ट्रोल करना है। अभी इशारे में कह रहे हैं फिर सभी प्रत्यक्ष रूप में आपकी स्थिति बोलेगी। छिप नहीं सकेंगे। जैसे नारद की सूरत सभा के बीच छिप सकी? अभी तो बाप गुप्त रखते हैं लेकिन थोड़े समय के बाद फिर गुप्त नहीं रह सकेगा। उनकी सूरत सीरत को प्रत्यक्ष करेगी। जैसे साइंस में आजकल इन्वेंशन करते जाते हैं। कोई भी गुप्त चीज़ स्वतः ही प्रत्यक्ष हो जाए। ऐसे ही साइलेंस की शक्ति का भी स्वतः ही प्रत्यक्ष रूप हो जायेगा। कहने वा करने से नहीं होगा। समझा

तो भविष्य समय की सूचना दे रहे हैं। इसलिए अब नाज़ुक समय का सामना करने के लिए नाज़ुकपन छोड़ना है। तब ही नाज़ुक समय का सामना कर सकेंगे। अच्छा। हर्षितमुख रहने का जो गुण है वह पुरुषार्थ में बहुत मददगार बन सकता है। जैसे सूरत हर्षित रहती है वैसे आत्मा भी सदैव हर्षित रहे। इस नैचुरल गुण को आत्मा में लाना है। सदा हर्षित रहेंगे तो फिर माया की कोई आकर्षण नहीं होगी। यह बाप की गारंटी है। लेकिन वह तब होगा जब सदैव आत्मा को हर्षित रखेंगे। फिर बाप का काम है माया के आकर्षण से दूर रखना। यह गारंटी बाप आप से विशेष कर रहे हैं। क्योंकि जो आदि रत्न होते हैं उन्हों से आदिदेव का विशेष स्नेह होता है। तो आदि को अनादी बनाओ। जब अनादी बन जायेंगे तो फिर माया की आकर्षण नहीं होगी। समस्याएं सामने नहीं आयेंगी। जब बाप का स्नेह स्मृति में रहेगा तो सर्वशक्तिमान के स्नेह के आगे समस्य क्या है। कहाँ वह स्नेह और कहाँ समस्या। वह राई वह पहाड़, इतना फर्क है। तो अनादि रत्न बनने के लिए सर्वशक्तिमान की शक्ति और स्नेह को सदैव साथ रखना है। अपने को अकेला कभी भी नहीं समझो। साथी के बिना जीवन का एक सेकण्ड भी न हो। जो स्नेही साथी होते हैं वह अलग नहीं होते हैं। साथी को साथ न रखने से, अकेला होने से माया जीत लेती है।

अच्छा !!!